उमेश चन्द्र त्रिपाठी
महराजगंज: लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई थी जो 17 सीटों के समझौते के साथ समाप्त हो गई। माना जा रहा है कि बुधवार को सपा और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग का मामला आनन फानन में तब तय हुआ जब सपा की तरह कांग्रेस ने भी अपने 12 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी जिसमें सपा को परेशान करने वाली बदायूं की सीट भी थी जहां से सपा ने शिव पाल सिंह यादव को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर कांग्रेस ने सपा से आए सलीम शेरवानी को उम्मीदवार बना दिया था। फिलहाल तय सीटों के अनुसार कांग्रेस को बदायूं की सीट छोड़नी पड़ी तो सपा ने भी तीन सीट पर तय अपने उम्मीदवार वापस ले लिए। फिलहाल कांग्रेस सलीम शेरवानी को किसी अन्य सीट से चुनाव जरूर लड़ाएगी। संभावना है सपा की ओर से कांग्रेस को दो चार सीटें और दी जा सकती है। जिस तरह सपा की ओर से कांग्रेस के प्रति लगातार द्विअर्थी बयान आ रहे थे उसे लेकर कांग्रेस सतर्क थी और यह भी तय कर लिया था कि वह सपा पर गठबंधन को लेकर न तो दबाव बनाएगी और न ही खैरात मांगेगी। इस बीच राजनीतिक विश्लेषकों की राय साफ थी कि यूपी में कांग्रेस को कुछ खोने के लिए नहीं है। एक सीट राय बरेली की थी,सोनिया गांधी के राज्य सभा में दाखिल होने से भाजपा की पूरी कोशिश होगी कि वह भी कांग्रेस से छीन ले ऐसे में यदि कांग्रेस को कुछ पाना है और सपा को पांच से आगे का आंकड़ा पार करना है तो दोनों का गठबंधन
जरूरी है।
रायबरेली या अमेठी में राहुल गांधी की न्याय यात्रा में अखिलेश का यह कहना कि जब तक सीट शेयरिंग फाइनल नहीं होता वे राहुल की यात्रा में शामिल नहीं होंगे, कुछ बचकाना सा लगा। इसमें राजनीतिक परिपक्वता का घोर अभाव दिखा। सपा और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग पर कुछ और भी पेंच था। सपा को यह भी नागवार लग रहा है कि कांग्रेस सपा से किनारा किए नेताओं को प्लेटफार्म क्यों उपलब्ध करा रही है? पल्लवी पटेल और स्वामी प्रसाद मौर्य भी कांग्रेस के करीब आ रहे हैं।
जानकार यह भी कहते हैं कि सपा जिस तरह की चुनावी बिसात बिछा रही है उससे लग रहा है कि वह अपनी मुस्लिम परस्ती वाली छवि से छुटकारा पाना चाहती है। बताने की जरूरत नहीं कि सपा को अपने यादव मुस्लिम समीकरण पर ज्यादा भरोसा रहा है। लेकिन पार्टी में मुसलमानों की लगातार हो रही उपेक्षा से वे आहत हैं। राज्य सभा की तीन सीटों के लिए हो रहे चुनाव में भी सपा ने मुस्लिमों की उपेक्षा की। इस तीन में से एक सीट किसी मुस्लिम के खाते में जाने का भरोसा था। उम्मीद थी कि इस बार जया बच्चन को ब्रेक लेकर उनकी जगह कोई मुस्लिम उम्मीदवार होगा, ऐसा नहीं हो पाया। सपा का यह रवैया मुस्लिमों की उपेक्षा का जीता जागता उदाहरण है।
इधर आरएलडी के अलग हो जाने से सपा और कांग्रेस गठबंधन में कांग्रेस की सीटों के बढ़ने की संभावना थी लेकिन सपा उसके बाद भी कांग्रेस को 17 सीटें ही देना हैरान करने वाली है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा बसपा को यादव, दलित और मुस्लिम वोटरों के बदौलत बड़ी कामयाबी की उम्मीद थी। लेकिन बसपा दस तक रह गई और सपा पांच में ही सिमट गई। सपा बसपा के 2019 लोकसभा का चुनाव परिणाम ऐसा रहा कि दोनों ही अपने अपने परंपरागत वोटरों को लेकर सोचने को मजबूर हुए।