प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा का प्रयोग बना प्रभावी शिक्षण की कुंजी : डॉ. धनंजय मणि त्रिपाठी का अध्ययन

उत्तर प्रदेश महाराजगंज

महराजगंज के घुघली ब्लॉक के परिषदीय विद्यालयों पर आधारित शोध में सामने आई अहम बातें

हर्षोदय टाइम्स ब्यूरो

गोरखपुर / महराजगंज। “बच्चा वही जल्दी सीखता है जो वह समझता है और समझ उसी भाषा में आती है जो उसकी मातृभाषा होती है।” इसी आधार पर उत्तर प्रदेश के महराजगंज जनपद के घुघली ब्लॉक के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों पर किया गया एक शोध बताता है कि शिक्षा में मातृभाषा का प्रयोग न केवल सीखने को सहज बनाता है बल्कि बच्चों की रचनात्मकता, संवाद क्षमता और विषय की गहराई को भी बढ़ाता है।

यह शोध “उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में मातृभाषा का प्रयोग, प्रभावी शिक्षण और अधिगम : महराजगंज जनपद के घुघली ब्लाक के संदर्भ में” विषय पर किया गया है। इसे डॉ. धनंजय मणि त्रिपाठी, सहायक अध्यापक, बेसिक शिक्षा परिषद, महराजगंज एवं शोधकर्ता, पोल्यूशन एंड एनवायरनमेंटल ऐसे रिसर्च लैब (पर्ल), दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा प्रस्तुत किया गया है।

🔹 अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

डॉ. त्रिपाठी के अनुसार, बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने से उनकी पठन-लेखन क्षमता और साक्षरता कौशल में उल्लेखनीय सुधार देखा गया। मातृभाषा न केवल समझने का माध्यम है बल्कि यह स्थानीय संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली से जुड़ाव का सेतु भी है।
उन्होंने बताया कि अगर प्रारंभिक तीन वर्षों तक शिक्षा मातृभाषा में दी जाए तो सीखने के परिणाम अधिक प्रभावी हो सकते हैं। अध्ययन में यह भी स्पष्ट हुआ कि मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाए जाने पर विद्यार्थियों का आत्मविश्वास और अभिव्यक्ति दोनों बढ़ते हैं।

🔹 शिक्षक और अभिभावक की भूमिका

शोध में कहा गया है कि अभिभावकों को अपने बच्चों को सबसे पहले मातृभाषा सिखाने पर ध्यान देना चाहिए, जबकि सरकार और शिक्षकों को प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा देने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना चाहिए।

🔹 शिक्षा नीति से सामंजस्य

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1981 और नयी शिक्षा नीति 2020 दोनों में यह व्यवस्था दी गई है कि प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम मातृभाषा या स्थानीय भाषा हो। डॉ. त्रिपाठी का अध्ययन इसी नीति के अनुरूप शिक्षण में मातृभाषा के प्रयोग को प्रभावी बनाने की दिशा में एक व्यावहारिक पहल है।

🔹 लेखक परिचय

डॉ. धनंजय मणि त्रिपाठी का जन्म 6 अगस्त 1978 को कुशीनगर में हुआ। पर्यावरण विज्ञान में स्वर्ण पदक के साथ एमएससी, बीएड और वनस्पति विज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने वाले डॉ. त्रिपाठी एक कुशल शिक्षक होने के साथ-साथ प्रसिद्ध कहानीकार और शोधकर्ता भी हैं।


उनकी ‘पहला प्यार’, ‘पिया बावरी’, ‘सेकेंड चांस’, ‘किस्मतिया’ और ‘कलक्टर बिटिया’ जैसी पुस्तकों को पाठकों ने खूब सराहा है। साहित्य और शिक्षा दोनों क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें भिखारी ठाकुर सम्मान (2019), मातृभाषा गौरव सम्मान (2020), स्टेट लेवल बेस्ट टीचर अवार्ड (2022) और ज्योतिष शिरोमणि अवार्ड (2025) सहित सौ से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।

डॉ. त्रिपाठी वर्तमान में उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षक पद पर कार्यरत हैं और शिक्षा, साहित्य व ज्योतिष के क्षेत्र में अपनी मौलिक शोध-यात्रा जारी रखे हुए हैं।

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