हर्षोदय टाइम्स से शेषमणि पाण्डेय
नई दिल्ली/लखनऊ। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी—एक ऐसा नाम, जो भारतीय राजनीति में शालीनता, विचारशीलता और राष्ट्रनिष्ठा का पर्याय बन चुका है। उनकी 101वीं जयंती के अवसर पर देश उन्हें स्मरण कर रहा है ।एक कुशल राजनेता, संवेदनशील कवि और दूरदर्शी प्रधानमंत्री के रूप में।
25 दिसंबर 1924 को जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति को केवल सत्ता का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र सेवा का सशक्त औज़ार बनाया। वे उन विरले नेताओं में रहे, जिन्होंने विरोध की राजनीति में भी संवाद और सहमति की संस्कृति को जीवित रखा। संसद हो या सार्वजनिक मंच उनके शब्दों में दृढ़ता के साथ-साथ सौम्यता झलकती थी।
वाजपेयी का राजनीतिक जीवन संघर्ष, सिद्धांत और समर्पण की मिसाल रहा। जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक की यात्रा में उन्होंने संगठन को वैचारिक मजबूती दी। तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने अटल जी ने पोखरण परमाणु परीक्षण, स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना और विदेश नीति में साहसिक फैसलों के जरिए भारत को वैश्विक मंच पर नई पहचान दिलाई।
प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भी उनकी लोकतांत्रिक सोच कभी कमज़ोर नहीं पड़ी। आलोचना को उन्होंने शत्रुता नहीं, बल्कि लोकतंत्र की ताकत माना। यही कारण है कि वे सत्ता और विपक्ष दोनों के बीच समान रूप से सम्मानित रहे।
देश आज भी उनके शब्दों को दोहराता है
“हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा…”
और यही पंक्तियाँ अटल जी को अमर बनाती हैं।

