महराजगंज जनपद से सटे भारत-नेपाल सीमा पर वर्षों से कुंडली मारकर बैठे कुछ सिपाही,दरोगा और दीवान अवैध वसूली कर हो रहे हैं मालामाल – सूत्र
जिले में चरस के साथ पहले भी पकड़ा जा चुका है एक दरोगा
अवैध वसूली और बड़े पैमाने पर तस्करी कराने के आरोप में सीमावर्ती लक्ष्मीपुर पुलिस चौकी के प्रभारी समेत सभी पुलिसकर्मी एक बार हो चुके हैं लाइन हाजिर
हर्षोदय टाइम्स ब्यूरो महराजगंज
महराजगंज : भारत-नेपाल सीमा पर वर्षों से कुंडली मारकर बैठे कुछ सिपाही,दीवान,वाहन चालक और उपनिरीक्षक के चलते बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। आखिर जो भी पुलिसकर्मी यहां कुंडली मारकर बैठे हैं उन पर कौन मेहरबान है यह एक बड़ा और गंभीर सवाल है?
सूत्रों के मुताबिक महराजगंज के पुलिस अधीक्षक कार्यालय में कुछ ऐसे पुलिसकर्मी हैं जिनका एक संगठित गिरोह है जो केवल धनादोहन कर भ्रष्ट पुलिसकर्मियों की पोस्टिंग कराने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। इतना ही नहीं अगर किसी का ट्रांसफर होता भी है तो वे थोड़े दिनों के लिए हटा दिए जाते हैं और पुनः सीमावर्ती थाने और चौकियों पर पोस्ट कर दिए जाते हैं। इस तरह घूम फिर कर वह सीमावर्ती इलाकों में में हीं तीन साल से चार साल का समय व्यतीत कर तस्करों से थन उगाही कर करोड़पति बन जाते हैं। कुछ लोग तो अपनी निजी गाड़ियों में पुलिस का स्टीकर लगाकर टैक्सी में चलवाने और उसी से तस्करी कराने का भी काम करते हैं। मालवाहक वाहनों,विना परमिट की चलने वाली बसों, सोनौली के 100 से अधिक ट्रांस्पोर्टरों, निजी टैक्सियों से अवैध वसूली इनकी दिनचर्या बन गई है।
बता दें कि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक प्रदीप गुप्ता के कार्यकाल की बात करें तो जिले में ऐसे पुलिसकर्मी भी हैं जिनकी पोस्टिंग उन्होंने की थी पर उसके बाद पुलिस अधीक्षक डॉ कौस्तुभ और वर्तमान में पुलिस अधीक्षक सोमेंद्र मीणा भी आ गये पर वर्षों से कुंडली मारकर बैठे पुलिसकर्मियों को नहीं हटाया जा सका। आखिर इन पुलिसकर्मियों को कौन हटाएगा जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार और अवैध वसूली के तमाम आरोप पहले भी लग चुकें हैं। बीते दिनों एक उपनिरीक्षक को चरस के साथ गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। जो मादक पदार्थों की तस्करी में पूरी तरह से लिप्त पाया गया था।
बता दें कि सोनौली एक अंतर्राष्ट्रीय महत्व की नागरिक पुलिस चौकी है। जहां चौकी से आधा दर्जन चौकी प्रभारी,कोतवाली के चार थानेदार और नौतनवां सर्किल से चार पुलिस क्षेत्राधिकारी बदल दिए गए हैं। लेकिन इन बदलावों के बाद भी कुछ दरोगा सिपाही और दीवान झुलनीपुर से कोल्हुई तक विगत चार वर्षों से गणेश परिक्रमा कर रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि इन्हीं पुलिसकर्मियों की हरकतों की वजह से उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बदनाम हो रही है। जिसका असर बीते लोकसभा चुनाव के परिणाम में भी देखने को मिला।
बीते दिनों एसएसबी जवानों पर हमला होना भी पुलिस के लिए एक चुनौती बनता जा रहा है। ऐसे अराजक तत्वों को आखिर किसका आशिर्वाद है जिन्होंने अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों और जवानों पर जान लेवा हमला कर उन्हें जान से मारने की कोशिश की। बेशक पुलिस ने कुछ लोगों गिरफ्तार किया है पर इन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई क्यों नहीं की गई,इनके घरों पर बुल्डोजर क्यों नहीं चलवाया गया और इनकी गाड़ी पल्टाने में पुलिस को क्या दिक्कत है यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है? सैनिकों पर जानलेवा हमला करना किसी देशद्रोह और आतंकी गतिविधि से कम नहीं है। आखिर समूची भारत-नेपाल सीमा पर तस्करों के मनोबल को कौन बढ़ा रहा है। सूत्रों का कहना है कि सरहद पर तैनात सभी पुलिस कर्मियों के नेपाली और भारतीय सिम के काल डीटेल की जांच करने की जरूरत है। इस जांच से साफ तौर पर स्पष्ट हो जाएगा कि किस पुलिसकर्मी के सिम में कितने तस्करों और अपराधियों के नंबर फीड हैं। अन्यथा अर्धसैनिक बल के जवान ही जब सुरक्षित नहीं रहेंगे तो आम जनता कैसे सुरक्षित रहेगी?
सूत्रों के अनुसार सोनौली चौकी पर तैनात एक चर्चित सिपाही पिछले तीन वर्षों से आधा दर्जन चौकी प्रभारियों के स्थानांतरण के बाद भी कुंडली मारकर बैठा हुआ है। इसका असर यह हुआ है कि जो भी चौकी प्रभारी आता है, वह सिपाही का चहेता बन जाता है, जिसके कारण अन्य सिपाही अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। यह सिपाही अपने आप को चौकी प्रभारी से कम नहीं समझता और कभी-कभी स्थानीय स्तर पर सिपाहियों की ड्यूटी से लेकर शिकायतों तक की देखरेख करता है। सीमा पर विभिन्न प्रकार के वैध और अवैध कार्यों का पूरा हिसाब-किताब रखने की जिम्मेदारी भी इसी पर है।
सोनौली थाने में भी वैसा ही माहौल
सोनौली चौकी और थाने में भी पिछले तीन वर्षों से दो चर्चित सिपाहियों ने अपना कब्जा जमा रखा है। इस अवधि में कई सिपाही थाने और चौकी पर आए और चले गए, लेकिन यह दोनों सिपाही जमे हुए हैं और पूरे क्षेत्र की निगरानी कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार थाने पर कोई भी दरखास्त लेकर जाता है तो यह चर्चित सिपाही वहीं से डील करना शुरू कर देते हैं, जिससे मामला थानेदार तक नहीं पहुंचता है। यहां तक कि यदि थानेदार कोई आदेश भी कर देते है, तो यह सिपाही उसे तब तक नहीं मानते जब तक उनकी मनमानी पूरी नहीं हो जाती।
इन चर्चित सिपाहियों की करतूतों से स्थानीय जनता और अन्य सिपाही काफी परेशान हैं। थाने और चौकी के अन्य सिपाही इन दोनों सिपाहियों की मनमानी से त्रस्त हैं, और उच्च अधिकारियों का ध्यान इस समस्या की ओर आकर्षित कराया गया है। यह स्थिति न केवल पुलिस महकमे के अनुशासन को प्रभावित कर रही है, बल्कि स्थानीय जनता के लिए भी यह चिंता का विषय बन गई है। ऐसे में अब देखना होगा कि उच्चाधिकारी इस गंभीर समस्या का समाधान कब और कैसे करते हैं?