लोकसभा चुनाव में बसपा की राह अलग क्यों?

उत्तर प्रदेश महाराजगंज

उमेश चन्द्र त्रिपाठी ब्यूरो

महराजगंज(हर्षोदय टाइम्स): लोकसभा के इस चुनाव में यूपी की सीटों पर उम्मीदवार तय करने को लेकर सपा और बसपा के बीच लुका छिपी का खेल चल रहा है। इस बार जहां बसपा अकेले चुनाव लड़ रही है वहीं सपा इंडिया एलायंस के साथ मैदान में हैं। 80 में से 67 सीटें अपने हिस्से में लेने वाली सपा के समक्ष उम्मीदवार तय करना एक चुनौती जान पड़ रहा है तो बसपा की रणनीति सपा या कांग्रेस को हर हाल कमजोर करने की है। बसपा के घोषित अब तक उम्मीदवारों की सूची देख यही जान पड़ रहा है।

उसने अब तक घोषित कुल उम्मीदवारों में छः मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। बसपा के ये मुस्लिम उम्मीदवार सपा और कांग्रेस उम्मीदवार के समक्ष चुनौती ही पेश करेंगे। आखिर सहारनपुर में कांग्रेस के इमरान मसूद के सामने बसपा द्वारा मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा करने का उद्देश्य क्या है? मजे की बात यह है कि चुनाव लड़ने को आतुर बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार भी इस ओर से आंख बंद किए हुए हैं कि आखिर इससे किसको फायदा होगा? बसपा ने ऐसा ही अमरोहा सीट पर भी किया है जहां से कांग्रेस के दानिश अली चुनाव लड़ रहे हैं। इतना ही नहीं सपा ने जातीय समीकरण के मद्देनजर जहां गैर मुस्लिम व गैर यादव उम्मीदवार उतारे हैं वहां से भी बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर इंडिया एलायंस उम्मीदवार के समक्ष चुनौती खड़ी कर दी है। बसपा के भाजपा को फायदा पहुंचाने वाले पैंतरे को देख सपा सतर्क हो गई है। उसे फिलहाल यूपी में उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करने से पहले बसपा की सूची का इंतजार करने को मजबूर होना पड़ रहा है।

यूपी में 25 सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं लेकिन यहां यदि दो मुस्लिम उम्मीदवार आमने-सामने होते हैं तो इसका सीधा फायदा भाजपा को होता है। बसपा चूंकि ऐसा ही कर रही है इसलिए उसपर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगता रहता है लेकिन यह भी देखें कि वह एक बड़ी राजनीतिक पार्टी है इसलिए कहीं से भी किसी को उम्मीदवार बना सकती है। उसके इस चुनावी रणनीति से किसी को नुकसान हो तो होता रहे। यह सच है कि बसपा जहां-जहां मुस्लिम उम्मीदवार उतारेगी वहां गठबंधन उम्मीदवार के सामने मुश्किलें आएंगी ही आएंगी। बसपा और सपा दोनों ही अभी यूपी के तमाम सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतार पाई है। दोनों को एक दूसरे के उम्मीदवार घोषित होने की प्रतीक्षा है। कहा जा रहा है कि मुस्लिम वोटर इस बार भाजपा के खिलाफ एक जुट है, वह अपना वोट बिखरने नहीं देगा लेकिन यदि ऐसा होता तो बसपा दूसरे दल के मुस्लिम उम्मीदवार के खिलाफ मुस्लिम उम्मीदवार नहीं पाती। हैरत है कि बसपा का मुस्लिम उम्मीदवार यह जान रहा है कि उसके लड़ने से मुस्लिम वोटों में बंटवारा तय है फिर यदि वह लड़ने पर अमादा है तो इसका मतलब उसे भाजपा से कोई गिला शिकवा नहीं है।

मजे की बात है कि इंडिया एलायंस जहां भाजपा से दो- दो हाथ करने को तैयार है वहीं बसपा इसे कमजोर करने की ताक में है। सपा द्वारा उम्मीदवारों की घोषणा में देरी का नुकसान संभव है जबकि बसपा को एन वक्त पर उम्मीदवार उतारकर सपा या कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने में कुछ खास मशक्कत नहीं करनी होगी। बसपा की चुनावी रणनीति को देख साफ लग रहा है कि उसकी चाहत कुछ सीटें जीतकर ज्यादातर पर गठबंधन उम्मीदवार को पटखनी देने की है। लेकिन यदि दलितों के घरों तक बाबा साहेब डा अम्बेडकर द्वारा लिखित संविधान की रक्षा का संदेश पंहुच गया तो बसपा का मुस्लिम कार्ड मायावती की मंशानुरूप शायद उतना कामयाब न हो इसी के साथ कभी बसपा का कैडर वोटर रहे दलित समाज में चर्चा तेज है कि आखिर इस चुनाव में बसपा अलग राह पर क्यों है?

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