हनुमान चालीसा और हनुमान जी की पूजा पाठ से होते हैं ये लाभ

उत्तर प्रदेश महाराजगंज



महाराजगंज । मंगलवार को हनुमान जी की पूजा का दिन है। इस दिन हनुमान जी की कृपा से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। नुमान जी की पूजा आराधना से भय दूर होता है और साथ ही सुख, शांति, रोग आदि से भी लाभ होता है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति हनुमान चालीसा हर मंगलवार को पढ़ता है, उसे हनुमान जी की कृपा से कई परेशानियां कभी परेशान नहीं करती हैं। हर मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी अराधना से ये 5 लाभ होते हैं।

हनुमान चालीसा के पाठ से एक तरफ भगवान हमें हिम्मत और ताकत देते हैं, वहीं हमारी धन को लेकर जो समस्याएं होती है, वो भीकम हो जाती हैं। हनुमान जी की पूजा सात्विक होकर और श्रद्धाभाव से करने से भगवान हमारी सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं, क्यों हनुमान जी को अष्टसिद्धि और नवनिधि के दाता कहा गया है।

अगर आपको कोई रोग सता रहा है, तो वो भी हनुमान चालीसा के पाठ से कम होता है। इसके लिए आपको निरंतर हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। ” नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।” हनुमान जी की ये चौपाई आपको रोगों से लड़ने की ताकत देती है।

अगर आप किसी नेगेटिव शक्ति या किसी से डर रहे हैं, तो हनुमान चालीसा का पाठ करना शुरु कर दें। ‘भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे।’ इस चौपाई में लिखा है कि हनुमान जी जब पास आते हैं, यानी जब हम हनुमान जी का ध्यान करते हैं, तो सभी नेगेटिव एनर्जी दूर भाग जाती है।

शनिवार को हनुमानजी की पूजा से शनि साढ़ेसाती का प्रभाव कम होता है। इसलिए अगर शनि की दशा से पीड़ित है, तो हनुमान चालीसा का पाठ नियमित करें।

हनुमान चालीसा का पाठ शनिवार और मंगलवार को जरूर करना चाहिए। श्रद्धा भाव से हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं। हनुमान चालीसा को अपनी श्रद्धा के अनुसार 5, 7, 11 बार पाठ करना चाहिए। नीचे आप पढ़ें संपूर्ण हनुमान चालीसा पढ़ सकते हैं।

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि।
बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

राम दूत अतुलित बल धामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुण्डल कुँचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।

कांधे मूंज जनेउ साजे।।

शंकर सुवन केसरी नंदन।

तेज प्रताप महा जग वंदन।।

बिद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे।

रामचन्द्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये।

श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।

कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।

लंकेश्वर भए सब जग जाना।।

जुग सहस्र जोजन पर भानु।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।

तुम रच्छक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।

महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरे सब पीरा।

जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा।

तिन के काज सकल तुम साजा।।

और मनोरथ जो कोई लावै।

सोई अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु संत के तुम रखवारे।।

असुर निकन्दन राम दुलारे।।

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुह्मरे भजन राम को पावै।

जनम जनम के दुख बिसरावै।।

अंत काल रघुबर पुर जाई।

जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बन्दि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।

दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

एस्ट्रो आचार्य डॉ धनंजय मणि त्रिपाठी
संपर्क : 8115557778

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