निजी विद्यालय संचालक शिक्षा के नाम पर कर रहे हैं अभिभावकों का शोषण, सवालों के घेरे में शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली
हर्षोदय टाइम्स/विवेक कुमार पाण्डेय
भिटौली /महाराजगंज:भिटौली और सिसवा मुंशी के आस पास ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के नाम पर खुलेआम लूट मची हुई है। बड़ी संख्या में निजी विद्यालय बिना किसी मान्यता के संचालित हो रहे हैं। इनमें न जरूरी सुविधाएं हैं और न ही योग्य शिक्षक। ये विद्यालय अब शिक्षा का माध्यम नहीं, बल्कि मुनाफा कमाने का जरिया बन गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में विकल्पों की कमी और जागरूकता के अभाव का फायदा उठाकर ये स्कूल अभिभावकों को झूठे सपने दिखाते हैं। अंग्रेजी माध्यम, स्मार्ट क्लास और उज्ज्वल भविष्य जैसे वादों के सहारे वे बच्चों का नामांकन करा लेते हैं, लेकिन एक बार बच्चा स्कूल में दाखिल हो जाता है, तो असली परेशानी शुरू होती है। फीस जरूरत से कई गुना वसूली जाती है, किताबें और यूनिफॉर्म महंगे दामों पर बेची जाती हैं और उन्हें खरीदने के लिए अभिभावकों को कुछ खास दुकानों पर ही भेजा जाता है।
अधिकांश विद्यालयों के पास न तो कोई सरकारी मान्यता है और न ही आधारभूत संरचना की न्यूनतम व्यवस्था। इसके बावजूद ये स्कूल वर्षों से बेखौफ संचालित हो रहे हैं। अभिभावकों से जबरन वसूली कर ये संस्थान शिक्षा को व्यापार में बदल चुके हैं।
सबसे हैरानी की बात यह है कि शिक्षा विभाग के पास इन विद्यालयों की कोई अधिकृत सूची तक मौजूद नहीं है। न नियमित जांच होती है और न ही अब तक किसी ठोस कार्रवाई का कोई प्रमाण सामने आया है। सवाल उठता है कि जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम आरटीई जैसी सशक्त व्यवस्था देश में लागू है, तो फिर इन अव्यवस्थाओं पर रोक लगाने वाला तंत्र क्यों निष्क्रिय है। क्या यह केवल लापरवाही है या किसी स्तर पर मौन सहमति ।
स्थिति अब अत्यंत चिंताजनक हो चली है। अगर समय रहते विभाग और प्रशासन नहीं जागे तो शिक्षा का यह अंधाधुंध निजीकरण ग्रामीण बच्चों के भविष्य को गहरे अंधकार में धकेल देगा। जरूरत है कि तत्काल इन अवैध विद्यालयों की सूची तैयार कर सख्त कार्रवाई की जाए और अभिभावकों को जागरूक किया जाए, ताकि वे भ्रमित न हों और बच्चों को एक सुरक्षित, गुणवत्ता-युक्त शैक्षिक वातावरण मिल सके।


 
	 
						 
						