नंगी हो गई बेरोजगारी की भयावहता ,नौकरी नहीं यह जंग है

उत्तर प्रदेश महाराजगंज

चपरासी भर्तीः 53 हजार पद, 24 लाख से ज्यादा आवेदन, MBA और PhD भी लाइन में!

इस भर्ती ने तोड़ा रिकॉर्ड, फीस से जमा हुआ करोड़ों का राजस्व

अगर लाखों की संख्या में युवाओं को चपरासी बनने के लिए मजबूर होना पड़े, तो यह केवल उनका नहीं, देश की नीतियों की भी पराजय ही है

ये आंकड़े नहीं, चेतावन हैं! शिक्षा तंत्र की हार है

हर्षोदय टाइम्स / विवेक कुमार पाण्डेय

सरकारी तंत्र को एक भर्ती प्रक्रिया ने देश की बेरोजगारी की भयावहता को नंगा कर दिया है। 24 लाख से अधिक युवाओं द्वारा चपरासी जैसे पदों के लिए आवेदन, और उनमें भी हजारों ऐसे जिनके पास एमबीए, एमटेक, पीएचडी जैसी उच्चतम डिग्रियाँ हैं। यह न केवल रोजगार व्यवस्था का अपमान है. बल्कि शिक्षा तंत्र की पराजय भी है। यह महज एक आंकड़ा नहीं है, यह उस युवा भारत की चौख है, जो ‘नौकरी’ नहीं, ‘सम्मान’ और ‘स्थिरता’ की तलाश में है। और यह तब है, जब सरकार हर चुनाव में रोजगार अपना सबसे बड़ा वादा बताती हैं। जब एक पीएचडी धारक व्यक्ति चपरासी बनने को मजबूर हो, तो यह पूछना जरूरी है कि क्या हम अपने युवाओं को शिक्षा दे रहे हैं या केवल उम्मीदों का धोखा ?

अब छात्र UPSC या RAS की तैयारी से पहले चपरासी या ग्रुप-डी की भर्ती को लक्ष्य मानने लगे हैं. क्योंकि उन्हें यकीन है कि कऊपर की परीक्षा अब नामुमकिन सी हो गई हैं।

सरकारी भर्तियों में वर्षों की देरी, फॉर्म भरे जाने के बाद परीक्षाओं का न होना, चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्तियों का लटकना यह सब मिलकर भारत के युवा मन में आक्रोश और अविश्वास बो रहे हैं।

नीतियों की नहीं, नीयत की जरूरत

यह विडंबना है कि जिस देश में 75% से अधिक युवा आबादी हो, वहां स्थायी सरकारी नौकरियों में कटौती हो रही है, निजी क्षेत्र में सुरक्षा नहीं है, और स्किल डवलपमेंट केवल पोस्टर भर रह गया है। सरकार को समझना होगा कि अब वक्त सिर्फ नई योजनाओं के उद्घाटन का नहीं, पुरानी विफलताओं का पोस्टमार्टम करने का है।

जोधपुर। देश में सरकारी नौकरी के लिए युवाओं की दीवानगी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि राजस्थान सरकार की ओर से जारी चपरासी जैसे ग्रुप-डी पदों की भर्ती के लिए 24 लाख 76 हजार से अधिक आवेदन जमा हुए हैं। वे आवेदन केवल 53,000 सीटों के लिए आए हैं। यानी औसतन हर एक पद के लिए लगभग 47 उम्मीदवार मुकाबले में हैं, जो प्रतियोगिता के स्तर को दर्शाता है।

काबिलियत का गिरता नहीं स्तर, पर नौकरी की तलाश बड़ी गंभीर

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस भर्ती में MBA, M.Tech. B. Tech और यहां तक कि PhD धारकों ने भी आवेदन किया है। वो युवा, जिन्होंने लाखों रुपए खर्च कर उच्च शिक्षा प्राप्त की, आज सिर्फ एक स्थिर नौकरी की चाह में ‘चपरासी’ जैसे पद के लिए आवेदन कर रहे हैं। इससे यह साफ झलकता है कि देश में डिग्रियों की संख्या भले ही बढ़ी हो, लेकिन रोजगार के अवसर उसी अनुपात में नहीं बढ़े।

योग्यता मांगी दसवीं, फार्म भर रहे हैं पोस्ट ग्रेज्युएट भी

सरकार लाख दावे करे कि बेरोजगारी कम हो रही है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है। जिस पर पर 10वीं या अधिकतम 12वीं पास योग्यता मांगी गई है, वहां पर देश

कितना आया होगा राजस्व ?

शिक्षा और रोजगार नीति पर पुनर्विचार आवश्यक

एक और जहां सरकार नई शिक्षा नीति लागू कर रही है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या शिक्षा और रोजगार में कोई सीधा रिश्ता बवा भी है या नहीं ?

अगर करोड़ों की संख्या में युवाओं को चपरासी बनने के लिए मजबूर होना पड़े, तो यह केवल उनका नहीं, देश की नीतियों का भी पराजय है।

अब देखना यह होगा फि इन लाखों उम्मीदवारों में से किसके हाथ आएगी ये सरकारी कुर्सी और किसके हिस्से में रहेगा केवल एडमिट कार्ड का इंतजार। लेकिन एक बात तो तय है वह भर्ती देश के युवाओं की मजबूरी की सबसे करारी तस्वीर बनकर सामने आई है।

सबसे उच्च शिक्षित युवाओं ने आवेदन किया है। यह किसी भी समाज के लिए गंभीर चेतावनी है। ये आंकड़े केवल भर्ती प्रक्रिया की नहीं, रोजगार नीति की विफलता की कहानी बयां कर रहे हैं।

ट्विटर (एक्स), फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर चपरासी भर्ती ट्रेड कर रहा है। कोई इसे डिग्रीधारियों का अपमान मान रहा है तो कोई इसे सरकारी नौकरी के प्रति अटूट विश्वास बता रहा है। एक यूजर ने ट्वीट किया, किसी संस्था में इंटरव्यू देने से बेहतर हे सरकारी दफ्तर में चारा पहुंचाना कम से कम नौकरी तो पचकी होगी, वहीं, एक पीएबडी चारक ने लिखा, अब नोकरी की बात आती है तो कोई काम छोटा नहीं होता, बस भविष्य सुरक्षित हो।

नीतिगत असंतुलन का परिणाम

आज की तारीख में यह स्पष्ट हो गया है कि नौकरी अब केवल आजीविका का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन की स्थिरता, समाज में प्रतिक्षा और मानसिक संतुलन का आधार बन गई है। चपरासी जैसे पदों की ओर बढ़ता हुआ यह झुकाव केवल आर्थिक असमानता ही नहीं, नीतिगत असंतुलन का भी परिणाम है।

इस भर्ती में अगर 600 प्रति फॉर्म की औसत फीस मानी जाए, तो कुल आवेदनकताओं से प्राप्त रकम करीब 150 करोड़ रुपयेहोती है। यह आंकड़ा भी बताता है कि सरकारी नौकरियों की भर्ती केवल रोजगार का नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर राजस्व अर्जन का साधन भी बन चुकी हैं। हालांकि इसमें से कई आवेदक ऐसे भी है जिन्होंने एक टाइम में ही शुल्क जमा करवा दिया है। यदि ऐसे आवेदक बारह लाख हो तो भी सरकार को इससे 75 करोड का राजस्व तो प्राप्त हुआ ही है।

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