ट्री बैंक और जीपीएस टेक्नोलॉजी के माध्यम से कर रहें धरती को बचाने का प्रयास

उत्तर प्रदेश महाराजगंज

  • जीपीएस टेक्नोलॉजी बन रहा प्रकृति संरक्षण का बेहतरीन माध्यम

महराजगंज (हर्षोदय टाइम्स): पर्यावरण की सुरक्षा के लिए ट्री बैंक और जीपीएस के माध्यम से पौधों की निगरानी की जाती है। इस बैंक के माध्यम से वह लोगों को मुफ्त में पौधे भी बांटते हैं। बदले में, लोगों को उस स्थान का जीपीएस लोकेशन देना होता है जहां पौधा लगाया जाएगा, ताकि डाॅ धनंजय मणि और उनकी टीम के सदस्य जीपीएस लोकेशन के माध्यम से इसकी नियमित निगरानी कर सकें। ट्री बैंक के माध्यम से, उन्होंने 2020 से लगभग साठ हजार पौधे लगाए हैं। गोरखपुर के राप्ती नगर निवासी डाॅ धनंजय मणि ने बताया कि उन्होंने 2012 में गोरखपुर के पंत पार्क और शहर के तमाम खाली पड़े सार्वजनिक जगहों से पौधरोपण की शुरूआत किया। वह गोरखपुर शहर के सड़कों पर हर 500 मीटर पर छायादार पौधे लगाते हैं। 2012 से उन्होंने इस काम को एक मुहिम का रूप देकर पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक लोगों की टीम बनाकर गांव व शहर के मंदिरों, पार्कों व खाली जगहों पर पिछले बारह सालों में तकरीबन साठ हजार से भी अधिक पौधे लगाए हैं, जो आज पेड़ बन चुके हैं। डॉ धनंजय का कहना है कि इस दौरान उन्होंने देखा कि कई लोग ऐसे हैं जो पौधे लगाना तो चाहते हैं, लेकिन वे पौधे नहीं लगा पाते क्योंकि उनके लिए पौधों की व्यवस्था करना महंगा होता हैं।

गोरखपुर पूर्वांचल के सबसे विकसित शहरों में से एक है। विकास के नाम पर यहां लाखों पेड़ कट चुके हैं। उनकी जगह पर ताड़ के पेड़ सड़कों के बीच में लगे है जो पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से बहुत ही कम आक्सीजन का उत्पादन कर रहें है। पत्तियों के न होने की वजह से इन पेड़ों से छाया और इन पर निवास करने वाली चिड़ियों की संख्या भी घटी है। ऐसे में यहां पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव ज्यादा दिख रहा है और पूर्वांचल पिछले एक दशक से लगातार बढ़ रहे तापमान की चपेट में है। यहां साल दर साल गर्मी लगातार बढ़ रही है। इसके बावजूद, बहुत कम लोग हैं जो प्रदूषण को कम करने के बारे में सोचते हैं और पर्यावरणीय संतुलन की चिंता करते हुए कुछ करते हैं। पर्यावरण विज्ञान में एमएससी और पीएचडी कर चुके डाॅ धनंजय मणि उनमें से एक हैं।

पेशे से शिक्षक डाॅ धनंजय मणि का पर्यावरण वास्तु पर कई मौलिक शोध पत्र राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हो चुका है। पिछले एक दशक से ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ रहे तापमान और जलवायु परिवर्तन के खतरों और भविष्य के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों से वह इतने ज्यादे चितिंत है कि उन्होंने वर्ष 2012 में ही यह तय कर लिया कि वे इस समस्या को कम करने के लिए कुछ करेंगे। इसके बाद उन्होंने अपने कुछ स्वयंसेवी साथियों और स्कूल कालेज में पढ़ने वाले नौजवानों को अपने इस मुहिम से जोड़कर पेड़ लगाने का निर्णय लिया, जो अब तक जारी है। उनकी टीम के द्वारा सन 2012 से अब तक तकरीबन साठ हजार से अधिक पौधे लगाए जा चुके हैं। जो इस समय पेड़ बन चुके हैं। इसके बाद उन्होंने ट्री बैंक की स्थापना की। इस ट्री बैंक का कार्यालय गोरखपुर में स्थित है। जिसके माध्यम से अब तक पूर्वांचल और उसके पास के जिलों में पौधे लगाए जा रहे हैं। इनमें बरगद, पीपल, नीम, जामुन, अर्जुन, अमरूद और आम के पौधे लगाए जा रहे हैं। पौधे लगाते समय यह ध्यान रखा गया कि उन्हें ऐसे स्थानों पर लगाया जाए जहां वे जानवरों, छोटे बच्चों या वाहनों द्वारा नष्ट न हों। ऐसे में, सरकारी और निजी स्कूलों और कॉलेजों, संस्थानों की हरित पट्टियों में लगाए जाते हैं। तालाबों के किनारों पर पौधे लगाते समय, उनके चारों ओर बैरिकेडिंग भी की जाती है। गांवों में वह सार्वजनिक तालाबों में बांस के पौधे और किनारों पर अर्जुन, पीपल और बरगद के पौधे लगा रहे हैं। बांस के पेड़ इसलिए लगाए जा रहे हैं क्योंकि इन्हें बढ़ने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है और यह जैव विविधता संरक्षण के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। जबकि अर्जुन, पीपल और बरगद के पेड़ इसलिए लगाए जा रहे हैं ताकि मिट्टी का स्वास्थ्य और पर्यावरण में ऑक्सीजन का स्तर अच्छा बना रहे।

पर्यावरण संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मिल चुके है कई सम्मान

पर्यावरण संरक्षण के लिए ट्री बैंक के नवाचार के साथ-साथ डॉ धनंजय मणि की पहल में प्रौद्योगिकी का उपयोग प्रमुख था। श्रीमती द्रोपदी देवी मेमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर, राजस्थान, नगर निगम गोरखपुर, केशव कल्चर, नई दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय एकता युवा मंच सहित दर्जनों सामाजिक संगठनों और सरकारी विभागों ने उन्हें सम्मानित किया है । डॉ धनंजय मणि यहाँ नहीं रुके हैं । भूजल दोहन में पानी की चोरी को रोकने तथा ईंट भट्ठों के द्वारा अवैध खनन और पर्यावरण प्रदूषण के लिए हो रहे दुष्परिणामों के खिलाफ के लिए उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली तथा एनजीटी का दरवाजा भी खटखटाया, जहाँ से लगभग 27 बड़े पर्यावरण माफियाओं पर जुर्माना भी लगाया गया है और आदेश दिया गया कि भविष्य में किसी भी स्थिति में में पर्यावरण का नुकसान नहीं होना चाहिए।

इसके अलावा, लोगों के मन में यह सवाल भी है कि उनके द्वारा लगाया गया पौधा विकसित होकर फल-फूल सकेगा या नहीं। इसे ध्यान में रखते हुए ट्री बैंक की शुरुआत की गई। जैसे आपके पैसे बैंक में सुरक्षित रहते हैं और ब्याज के कारण बढ़ते हैं। इसी तरह, ट्री बैंक के माध्यम से, पौधे सुरक्षित रहते हैं और पेड़ों में ब्याज की तरह ही सकारात्मक बढ़ोत्तरी होती हैं।

ट्री बैंक के माध्यम से मुफ्त में पौधे दिए जाते हैं

डॉ धनंजय मणि और उनकी टीम के सद्स्य ट्री बैंक का बैग लेकर चलते हैं। पौधा लेने वाले व्यक्ति का नाम और पता लिया जाता है। उनसे उस स्थान का जीपीएस लोकेशन मांगा जाता है जहां वे पौधे लगा रहे हैं। यह भी देखा जाता है कि जिस स्थान पर पौधा लगाया जा रहा है, वहां का पर्यावरण और परिस्थितियाँ उस विशेष प्रकार के पौधे के बढ़ने के लिए उपयुक्त हैं या नहीं, और अगर नहीं, तो पौधे के चयन या स्थान में परिवर्तन का सुझाव भी दिया जाता है। पौधा लगाने के बाद, हर 15 से 20 दिनों में आनलाइन पौधे की तस्वीर मांगा जाता हैं। इसके बाद, वे खुद या टीम के सदस्य समय-समय पर पौधे को देखने जाते हैं। उनके टीम के सदस्य इस काम में उनकी मदद करते हैं। डॉ धनंजय मणि ने बताया कि छह से आठ महीनों में पौधा इतना विकसित हो जाता है कि फिर उसे केवल नियमित पानी और सामान्य देखभाल की आवश्यकता होती है।

संस्थानों, हरित पट्टियों और बैरिकेडेड स्थानों में पौधे लगाए जाते हैं

डॉ धनंजय मणि ने बताया कि 2012 से अब तक उन्होंने लगभग साठ हजार पौधे लगाए हैं। जिसके लिए शिक्षण संस्थानों, सरकारी कार्यालयों, सरकारी भूमि तथा सरकार द्वारा आरक्षित जमीनों में पौधरोपण कर उनकी देखभाल किया जाता है।

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