बांग्लादेश,भूटान,इंडिया और नेपाल (बीबीआईएन) सीमा पर मानव तस्करी, एक ठोस रूप-रेखा का इंतजार

उत्तर प्रदेश महाराजगंज

सार

बीबीआईएन के सदस्य देशों को इस क्षेत्र में मानव तस्करी को रोकने के लिए बेहतर सीमा प्रबंधन और नियमन को तय करने की जरूरत है।

हर्षोदय टाइम्स /उमेश चन्द्र त्रिपाठी

सोनौली /महराजगंज! पिछले एक दशक से मानव तस्करी दुनिया में संगठित अपराध का सबसे तेजी से बढ़ता रूप बनता जा रहा है। कई कारणों जैसे कि बेरोजगारी एवं गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता और अपराध की मौजूदगी ने “ज़बरन, धोखे या छल के जरिए लोगों की भर्ती, परिवहन, ट्रांसफर, शरण देने या प्राप्ति” को बढ़ा दिया है। इस तरह के कारण जो कि अति-संवेदनशील लोगों के संबंध को बनाते हैं वो आकर्षित करने वाले कारणों- जैसे कि पैसे से संपन्न बाजार जहां कम मजदूरी लेने वाले श्रमिकों की मांग काफी होने के साथ-साथ महिलाओं एवं बच्चों का यौन शोषण भी काफी होता है- के साथ करीब से जुड़े हुए हैं।

इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय सीमा के खराब प्रबंधन को अक्सर सीमा के पार मानव तस्करी के प्रमुख कारण के रूप में बताया जाता है जिसका नतीजा संगठित अपराध, ज़्यादा भ्रष्टाचार और एचआईवी/एड्स जैसी संक्रामक बीमारियों के फैलाव के रूप में भी सामने आता है। वास्तव में हाल के वर्षों में सीमा प्रबंधन तेज़ी से छानबीन के दायरे में रहा है। इसकी वजह कम फंडिंग और बुनियादी ढांचे के कारण नियंत्रण करने वाले एजेंसियों और बॉर्डर पुलिस की कम तकनीकी क्षमता है। ऐसे में इस पर नियमित रूप से ध्यान नहीं जाता है और तस्करी के पीड़ित गुमनाम बने रहते हैं ख़ास तौर से अनियमित या असंगठित क्षेत्रों में, कोविड-19 महामारी और इसकी वजह से सीमा बंद होने के बाद भी अपराधियों के नेटवर्क अभी भी आगे बढ़ रहे हैं क्योंकि असामाजिक गुट ज्यादा खतरनाक एंट्री प्वाइंट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसकी वजह से जिन लोगों की तस्करी होती है उन्हें ज्यादा हिंसा, दुर्व्यवहार और बीमारियों के जोखिम का भी सामना करना पड़ता है।

अंतर्राष्ट्रीय सीमा के खराब प्रबंधन को अक्सर सीमा के पार मानव तस्करी के प्रमुख कारण के रूप में बताया जाता है जिसका नतीजा संगठित अपराध, ज्यादा भ्रष्टाचार और एचआईवी/एड्स जैसी संक्रामक बीमारियों के फैलाव के रूप में भी सामने आता है।

बीबीआईएन क्षेत्र बना तस्करी का अड्डा

दक्षिण एशिया में शेखी बघार कर जिस आर्थिक विकास का बखान किया जाता है, उसके बावजूद ये क्षेत्र मानव सुरक्षा, सामाजिक न्याय, अपर्याप्त शासन व्यवस्था और कमजोर आपराधिक न्याय वाले संस्थानों के बारे में चुनौतियों को लेकर कम लचीला रहा है। इस क्षेत्र को संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) के द्वारा बड़ी संख्या में लोगों, जिनमें महिलाएं एवं बच्चे शामिल हैं और जिनका शोषण किया गया है, के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण “स्रोत, रास्ता और गंतव्य” घोषित किया गया है।2021 में दक्षिण एशिया ने मानव तस्करी के 1,50,000 मामलों को देखा। इस मामले में इस क्षेत्र के भीतर चार महत्वपूर्ण देशों- बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल- के द्वारा एक आर्थिक और संपर्क रूप-रेखा के जरिए इस तरह के सामाजिक मुद्दों के समाधान की कोशिश की जा रही है। इस विशेष समूह को समझना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत की पहचान श्रम और यौन तस्करी के लिए एक रास्ते के रूप में की गई है। वास्तव में बांग्लादेश, नेपाल और भूटान तीन उन देशों में शामिल हैं जहां से बड़े पैमाने पर मानव तस्करी की जाती है।

भारत-नेपाल सीमा पर मानव तस्करी

भारत और नेपाल के बीच खुली सीमा ने मानव तस्करी की स्थिति को काफी बिगाड़ दिया है। 30,000 से ज्यादा नेपाली नागरिक मानव तस्करी के शिकार बन चुके हैं। मानव तस्करी करके लाए गए लोगों को या तो अफ्रीका पहुंचाया जाता है या खाड़ी क्षेत्र, ऐसे में उन्हें ट्रेन या बस के जरिए भारत ले जाना एक आसान रास्ता माना जाता है। स्थानीय सीमा जहां से उन्हें नेपाल से भारत ले जाया जाता है, वो उत्तर प्रदेश जिले के महाराजगंज जिले का सोनौली बॉर्डर और बिहार में बैरगनिया, रक्सौल एवं नरकटियागंज बॉर्डर हैं। मुख्य रूप से इन रास्तों के जरिए उन्हें पहले दिल्ली ले जाया जाता है। कभी-कभी मिजोरम के रास्ते से भी तस्करी होती है लेकिन अंत में उन्हें दुबई ले जाया जाता है। एक और रास्ता काठमांडू से पहले दिल्ली और फिर मॉस्को, स्पेन और दक्षिण अमेरिका का है।

भारत-बांग्लादेश सीमा पर मानव तस्करी

आपराधिक गुटों के द्वारा सैकड़ों की संख्या में गरीब बांग्लादेशी महिलाओं को भारत, पाकिस्तान और मध्य-पूर्व के देशों तक भारत-बांग्लादेश की खुली हुई सीमा के जरिए तस्करी करके ले जाया जाता है। ऐसी महिलाओं की अनुमानित संख्या 50 लाख से लेकर 1.5 करोड़ तक है और इनमें से ज्यादातर नौजवान लड़कियां हैं जिन्हें भारतीय वेश्यालयों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। बेनोपोल बॉर्डर क्रॉसिंग को अक्सर बांग्लादेश के जेस्सोर, सतखीरा, गोजाडांगा और हकीमपुर की पीड़ित लड़कियों को ले जाने के लिए दक्षिण-पश्चिम रास्ते का बिंदु माना जाता है। इस सीमावर्ती जगह में आम तौर पर सुरक्षा बल तैनात नहीं रहते हैं और यहां बाड़बंदी भी नहीं की गई है जिसकी वजह से तस्करी की प्रक्रिया आसान हो जाती है। बांग्लादेश के अन्य ज़िले जहां अनियंत्रित तस्करी होती है, वो हैं कुरीग्राम, लालमोनीरहाट, नीलफामारी, पंचागढ़, ठाकुरगांव, दिनाजपुर, नवगांव, चपाई नवाबगंज और राजशाही।

बीबीआईएन एक समूह के रूप में इसलिए सफल नहीं रहा क्योंकि ये मोटर व्हीकल समझौते या स्थानीय लोगों के लिए बेहतर संपर्क की संभावना के असर को अपने कार्यक्षेत्र के दायरे में नहीं रखता है। इन स्थानीय लोगों में विशेष रूप से कम उम्र की लड़कियां और बच्चे हैं जिन्हें सीमा पार की परियोजनाओं के लिए तस्करी करके ले जाया जाता है।

भारत-भूटान सीमा पर मानव तस्करी

भूटान से पीड़ितों को भारत और उसके बाद गंतव्य देश तक ले लाने के लिए कोकराझार और जलपाईगुड़ी मुख्य रास्ते हैं। वैसे तो भूटान की युवतियों को ताकत के दम पर या जबरदस्ती बाहर ले जाने के संबंध में बहुत ज़्यादा दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं लेकिन महिलाओं से जुड़े किस्से और सीमा के आस-पास के शहरों में लापता लोगों एवं व्यावसायिक सेक्स वर्कर्स की बढ़ती संख्या का ज़िक्र किया जाता है।

निष्कर्ष


ये सभी देश मानव सुरक्षा के लिए सीधे तौर पर खतरनाक मानव तस्करी के मामले का समाधान करने के लिए सक्रिय रहे हैं। 11वीं सार्क शिखर वार्ता के दौरान मानव तस्करी के मुद्दे को सामने लाने के उद्देश्य से वेश्यावृत्ति के लिए महिलाओं एवं बच्चों की तस्करी का मुकाबला करने और उनकी रोकथाम के लिए सार्क समझौते पर दस्तखत किया गया था। लेकिन इस संगठित कोशिश के बाद मिल कर काम करने के स्तर पर कुछ खास कार्रवाई नहीं हुई है। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि सार्क की प्रासंगिकता पर सवाल हैं। इसके बावजूद एशियाई विकास बैंक पिछले कई वर्षों से इस मोर्चे पर काम कर रहा है, खास तौर पर ज़्यादा जोखिम वाले समूहों पर पड़ने वाले असर के समाधान को लेकर, उदाहरण के तौर पर, बीबीआईएन एक समूह के रूप में इसलिए सफल नहीं रहा क्योंकि ये मोटर व्हीकल समझौते या स्थानीय लोगों के लिए बेहतर संपर्क की संभावना के असर को अपने कार्यक्षेत्र के दायरे में नहीं रखता है। इन स्थानीय लोगों में विशेष रूप से कम उम्र की लड़कियां और बच्चे हैं जिन्हें सीमा पार की परियोजनाओं के लिए तस्करी करके ले जाया जाता है और नये आर्थिक अवसरों के नाम पर उनका शोषण किया जाता है। इस तरह की निवेश परियोजनाएं न सिर्फ व्यापार और गरीबी खत्म करने को लेकर होती हैं बल्कि उनके साथ जुड़ी सामाजिक जटिलताओं को लेकर भी होती हैं। ये हिस्सा परियोजनाओं के करीबी उन्मूलन कार्यक्रमों का भाग हो सकता है। इससे सफल होने को लेकर उनका उत्तरदायित्व और बढ़ जाता है और सही ढंग से लागू करने को लेकर सभी सर्वसम्मति से तैयार हो जाते हैं। सरकार निश्चित रूप से इन नीतियों को अपने संस्थागत या बहुपक्षीय रूप-रेखा में शामिल करे ताकि इस अभियान को मुख्यधारा में लाया जा सके। ऐसा होने पर ही ऐसी बाधाओं को द्विपक्षीय या किसी क्षेत्र में एक देश के द्वारा समाधान किए जाने वाले मुद्दे के तौर पर नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे के तौर पर देखा जाएगा।

मानव तस्करी पर क्या कुछ कहना है राजेश मणि का!

एक स्वयंसेवी संस्था मानव सेवा संस्थान “सेवा” के कार्यकारी निदेशक राजेश मणि कहते हैं की मानव तस्करी एक बहुत बड़ा जघन्य अपराध है जो पूरी दुनिया में एक अभिशाप के रूप में जाना जाता है। इसमें फंसे महिलाओं और बच्चों की पूरी की पूरी पीढ़ी हमेशा के लिए बर्बाद हो जाती है जिसे सभी को मिलकर रोकना होगा।

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