पुरानी तलवार व डोली का खंभा आज भी जमींदार के घर पर है संरक्षित
जंगल से निकलकर एक शेर भी कभी-कभी यहां आता था
उमेश चन्द्र त्रिपाठी ब्यूरो
निचलौल/ महराजगंज (हर्षोदय हर्षोदय टाइम्स): निचलौल से सटे उत्तर ग्राम पंचायत टिकुलहिया में प्रसिद्ध देवी माता टिकुलहिया का मंदिर लोगों की अटूट आस्था का केंद्र है। वर्षों से पूजित माता के दरबार में दूर-दूर दू से लोग मत्था टेक यहां मन्नतें मांगने आते हैं। मां टिकुलहिया भक्तों की मुरादें पूरी करती हैं।
बता दें कि निचलौल के तत्कालीन जमींदार महेश्वरी दत्त पाण्डेय ने कई दशकों पूर्व देवी का आह्वान कर नेपाल के पहाड़ियों से माता को पिंडी स्वरूप में यहां लाकर स्थापित किया था। तब से शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा ग्राम टिकुलहिया में टिकुलहियां माई के नाम से पूजी जा रही हैं।
लोगों का कहना है कि जमींदार की इच्छा देवी के अंश पिंड को पूजन-अर्चन के लिए नेपाल के पहाड़ों से अपने घर ले आने की थी।
जमींदार परिवार के वंशज ओम प्रकाश पाण्डेय बताते हैं कि पिंड रूप में माता को एक विशेष डोली में लाया जा रहा था। नेपाल के पहाड़ियों से चलने के क्रम में एक गांव का सीवान पार करने पर एक बकरे की बलि दी जानी थी। लेकिन निचलौल नगर से सटे ग्राम पंचायत टिकुलहिया में आने पर बलि देने के लिए एक भी बकरा नहीं मिला। बकरे के इंतजाम में गांव वालों को काफी समय लग गया।
इधर ज्यादा समय तक माता की डोली उठाए लोग थक चुके थे, जिसके चलते कहांरों ने डोली नीचे रख दी। बकरा लाकर बलि देने के बाद माता की डोली को उठाने का काफी प्रयास किया गया लेकिन डोली नहीं उठ पाई। ऐसे में जमींदार ने वहीं पर एक वृक्ष के नीचे माता की पिंडी को स्थापित कर दिया और जीवन भर माता की पूजा-अर्चना टिकुलहिया आकर करते रहे। जमींदार परिवार के लोग आज भी टिकुलहिया माता की पूजा-अर्चना करते हैं।
मंदिर के मुख्य सेवादार अजय कुमार जायसवाल ने बताया कि मंदिर में नव देवी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा एवं मंदिर के जीर्णोधार के उपलक्ष्य में हर वर्ष चैत्र नवरात्र के अवसर पर तीन दिवसीय टिकुलहिया मंदिर महोत्सव का आयोजन होता है।
आज भी बलि देने में प्रयुक्त पुराना तलवार व डोली का खंभा जमींदार परिवार के घर संरक्षित है। आज भी यहां बलि की प्रथा है। नवरात्र में नवमी के दिन मनौती मानने वाले इस स्थान पर बकरे की बलि देते हैं।
जंगल से निकलकर एक शेर भी कभी-कभी यहां आता था
टिकुलहिया गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले इस स्थान पर पूरब के जंगल से निकलकर एक शेर आता था। शेर के आने व गर्जना सुनने की गवाही कई बुजुर्गों ने पहले किया था। आगे चलकर इस स्थान पर तत्कालीन पुजारी रामसुभग व विजय केडिया आदि ने मिलकर एक छोटा सा मंदिर बनवाया था। प्राचीन मंदिर के स्थान पर ही अब मंदिर कमेटी ने एक भव्य विशाल मंदिर का निर्माण कराया है। नेपाल सहित भारत के भी कोने-कोने से लोग यहां आकर अपनी मन्नतें मांगते हैं उनकी मुरादे पूरी होने पर लोगों का सैलाब यहां उमड़ता है तथा श्रद्धाभाव से लोग पूजा अर्चना करते हैं।