सपा को मिला था 2 लाख 82,127 और बसपा को मिला था 1 लाख 58,277 मत
दो धुर विरोधियों के साथ आने से भी वीरेंद्र चौधरी की राह अभी भी आसान नहीं
केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी को गठबंधन प्रत्याशी वीरेन्द्र चौधरी से मिल रही कड़ी टक्कर के बाद भी कोई खतरा नहीं
पूर्व सांसद कुंवर अखिलेश सिंह की माने तो गठबंधन प्रत्याशी वीरेन्द्र चौधरी अभी भी हैं लड़ाई से बाहर
हर्षोदय टाइम्स ब्यूरो महराजगंज
महराजगंज में कुंवर कौशल उर्फ मुन्ना सिंह और अमन मणि त्रिपाठी की जोड़ी के समर्थन में आने के बाद भी गठबंधन प्रत्याशी वीरेन्द्र चौधरी की राह अभी भी आसान होती नहीं नजर आती दिखाई दे रही है क्योंकि अगर 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में मिले सभी दलों के आंकड़े को देखा जाए तो आज भी भाजपा का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छह बार के सांसद और केंद्रीय वित्त राज्य राज्यमंत्री पंकज चौधरी की राह में कोई अड़चन नहीं दिखाई दे रहा है।
बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा- बसपा गठबंधन प्रत्याशी कुंवर अखिलेश सिंह को कुल 3 लाख 85,925 मत मिले थे और 3 लाख 40 हजार वोटों के बड़े अंतर से पंकज चौधरी से चुनाव हार गए थे। पुन: जब 2022 का विधान सभा चुनाव हुआ तो महराजगंज लोकसभा क्षेत्र के पांचों विधानसभा में सपा, बसपा और कांग्रेस को जो मत मिले उससे कहीं ज्यादा भाजपा प्रत्याशियों को मत मिले थे।
यदि 2022 के विधान सभा के आंकड़े को देखा जाए तो सपा,बसपा और कांग्रेस को मिलाकर कुल 5 लाख 43,679 और भाजपा को 5 लाख 72,362 मत प्राप्त हुए थे। इस बार गठबंधन सपा और कांग्रेस में है। 2022 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को जहां पांचों विधानसभा चुनाव में कुल 1 लाख 2,275 मत मिले थे वहीं सपा को 2 लाख 82,127 मत मिले थे।यदि इन दोनों दलों को जोड़ दिया जाए तो कुल 3 लाख 85,402 मत होता है जो 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी कुंवर अखिलेश सिंह को मिले वोटों से कम है। इसी तरह 2022 के विधान सभा चुनाव में पांचों विधानसभा में बसपा को कुल 1 लाख 58,277 मत मिले थे। 2024 के चुनाव में बसपा से मोहम्मद मौसमे आलम चुनाव लड़ रहे हैं जिन्हें गठबंधन प्रत्याशी वीरेन्द्र चौधरी से कम आंकना भारी भूल होगी। इस बार गठबंधन के सभी विरोधी एक साथ कदमताल जरूर कर रहे हैं पर 2022 के विधान सभा चुनाव में प्राप्त मतों पर गौर करें तो गठबंधन प्रत्याशी वीरेन्द्र चौधरी के लिए दिल्ली अभी बहुत दूर है। गौरतलब है कि इस बार महाराजगंज संसदीय चुनाव बहुत रोचक मोड़ पर पंहुच गया है। गठबंधन दल के कुछ साथी जो असमंजस की स्थिति में थे अब सब धीरे-धीरे जरूर साथ जुड़ने लगे हैं पर वह अपने वोट को गठबंधन प्रत्याशी वीरेन्द्र चौधरी को दिला पाएंगे इसमें पूरी तरह संदेह है वहीं समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद अखिलेश सिंह का यह कहना कि गठबंधन प्रत्याशी वीरेन्द्र चौधरी अभी भी लड़ाई से बाहर हैं गठबंधन प्रत्याशी और मुन्ना सिंह के लिए एक बहुत बड़ा मैसेज है। अखिलेश सिंह हर हाल में गठबंधन प्रत्याशी को महराजगंज लोकसभा क्षेत्र में पनपने नहीं देना चाहते हैं।
बता दें कि यहां पूर्व सांसद अखिलेश सिंह लोकसभा चुनाव लड़ने का मंसूबा पाले हुए थे लेकिन उनका पर्चा ही पारिवारिक षड़यंत्र के तहत निरस्त हो गया। दो बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके किसी अनुभवी व्यक्ति का पर्चा खारिज होना आश्चर्यजनक है। लेकिन इस घटना के पीछे कोई कहानी जरूर हो सकती है।
इसके पहले अखिलेश सिंह सपा से निष्कासित भी कर दिए गए थे। हालांकि अपने निष्कासन पर वे कहते हैं कि उन्होंने पहले ही पार्टी छोड़ दी थी। अखिलेश के चुनाव न लड़ने की दशा में उनके छोटे भाई कुंवर कौशल उर्फ मुन्ना सिंह इंडिया एलायंस उम्मीदवार के साथ खुल कर सामने आ गए। साल 2012 में मुन्ना सिंह कांग्रेस से विधायक चुने गए थे लेकिन वे कहने मात्र के ही कांग्रेस विधायक थे। सारा काम वे सपा के लिए करते थे। वे कहते हैं कि विषम परिस्थितियों में राहुल गांधी ने नौतनवां आकर उनके लिए सभा की थी इसलिए उनका धर्म है कि वह इंडिया एलायंस उम्मीदवार की मदद करें।
उन्होंने कहा कि वह आज भी सपा में हैं इसलिए भी उनका दायित्व है कि वे एलायंस के साथ रहे। हालांकि इंडिया एलायंस उम्मीदवार के साथ रहने से उनके बड़े भाई अखिलेश सिंह बेहद नाराज हैं।
कांग्रेस के वीरेंद्र चौधरी इस बार गठबंधन की ओर से लड़ रहे हैं चुनाव
इंडिया एलायंस उम्मीदवार के पक्ष में नौतनवां के ही पूर्व विधायक अमन मणि का आ जाना बड़ी बात है। पूर्वांचल के कद्दावर नेता अमर मणि त्रिपाठी के पुत्र अमन मणि त्रिपाठी 2017 में निर्दल विधायक चुने गए थे। 2022 में वे हारे ही नहीं 46,000 मत पाकर तीसरे स्थान पर आ गए थे। 90,000 से अधिक वोट पाकर ऋषि त्रिपाठी ने दोनों बाहुबलियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
बता दें कि अमर मणि त्रिपाठी का परिवार पहले कांग्रेसी रहा है लेकिन दो दशक से इस परिवार का कांग्रेस से नाता नहीं रहा। लोकसभा चुनाव के पहले अमन मणि त्रिपाठी ने दिल्ली कांग्रेस दफ्तर में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की थी। वे लोकसभा टिकट चाहते थे मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला के कड़े विरोध के बाद उन्हें टिकट नहीं मिला फिर भी वे कांग्रेस में बने हुए हैं। कुछ दिन पूर्व वे वीरेंद्र चौधरी के पक्ष में खुलकर आ गए और नौतनवां स्थित अपने आवास पर कांग्रेस का झंडा लगाकर कांग्रेसी होने का संदेश भी दिया।
इस तरह देखा जाय तो नौतनवां विधानसभा क्षेत्र के दो धुर विरोधी इंडिया एलायंस उम्मीदवार के साथ एक मंच पर आ गए। लोगों का कहना है कि नौतनवां विधानसभा क्षेत्र में अमन मणि और मुन्ना सिंह का अपना-अपना बड़ा जनाधार है और इसका सीधा फायदा लोकसभा के इंडिया एलायंस उम्मीदवार को मिलना तय है। अमन मणि त्रिपाठी और मुन्ना सिंह वेशक अलग-अलग दलों के हैं लेकिन लोकसभा 2024 के चुनाव में साथ आना छह बार के सांसद पंकज चौधरी के समक्ष मुश्किल पैदा कर पाएंगे ऐसा लगता नहीं है?
आप को बता दें कि बीते 2022 के चुनाव में कुंवर कौशल उर्फ मुन्ना सिंह सपा के प्रत्याशी थे और 74 हजार मत पाकर दूसरे स्थान रहे वहीं अमन मणि त्रिपाठी बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे और 46 हजार मत पाकर तीसरे स्थान पर खिसक गये। 2022 के विधान सभा चुनाव में बुरी तरह हारे अब यह दोनों नेता गठबंधन प्रत्याशी वीरेन्द्र चौधरी के पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे हैं।
बता दें कि 2022 के विधायक सभा चुनाव में महराजगंज जनपद में के पांचों विधानसभा में सपा, बसपा और कांग्रेस को कुल 5 लाख 43,679 वोट मिले थे और भाजपा तथा निषाद पार्टी को कुल 5 लाख 72,362 मत प्राप्त हुए थे।
फिलहाल बसपा प्रत्याशी मौसमें आलम पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में लगे हुए हैं और उन्होंने पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि अगर वह चुनाव जीत जाते हैं तो महाराजगंज में बेरोजगारों के लिए उद्योग स्थापित कर 10 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराएंगे।
बसपा प्रत्याशी मोहम्मद मौसमे आलम