इंडिया गठबंधन ने कांग्रेस को दी है यह सीट,पर कांग्रेस में कोई लड़ने वाला नहीं
इस चुनाव में महराजगंज जनपद से हमेशा के लिए मुक्त हो जाएगी कांग्रेस ?
उमेश चन्द्र त्रिपाठी
लखनऊ/महराजगंज। कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन के बाद उसके हिस्से आईं 17 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नामों को लेकर मंथन शुरू कर दिया है। जातीय गुणा-गणित के आधार पर बने नए समीकरणों को ध्यान में रखकर प्रत्याशियों की दावेदारी परखी जाएगी, वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने पंकज चौधरी पर भरोसा जताते हुए एक बार फिर महराजगंज सीट से लोकसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया है। पंकज चौधरी का भाजपा से यह नौवां चुनाव है जिसमें
1991,1993,1996,2004,2014 और 2019 में 6 बार चुनाव जीत चुके हैं और आज भारत सरकार में बतौर केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री के पद को सुशोभित कर रहे हैं। पंकज चौधरी की अब तक की राजनीति का यदि विश्लेषण किया जाय तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि उनका भारतीय राजनीति में इतना लंबा कार्यकाल पूरी तरह बेदाग रहा है। हालांकि पंकज चौधरी 1999 में सपा के कुंवर अखिलेश सिंह से और 2009 कांग्रेस के हर्षवर्धन सिंह से चुनाव हार भी चुके हैं। पंकज चौधरी यदि यह चुनाव जीतते हैं भारतीय राजनीति के इतिहास में एक और मील का पत्थर साबित होगा। क्या वह इस बार जीतकर दुबारा हैट्रिक लगाने में कामयाब हो पाएंगे यह एक यक्ष प्रश्न है।
हालांकि, कई सीटें ऐसी हैं, जिन पर कांग्रेस पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताएगी। सपा के वोट बैंक के सहारे कांग्रेस पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम बदलने की पुरजोर कोशिश करेगी।
महराजगंज से आखिर किसे मिल सकता है कांग्रेस का टिकट ?
गठबंधन के तहत यह सीट अब कांग्रेस के पाले में है।
महाराजगंज में कांग्रेस से सुप्रिया श्रीनेत और फरेंन्दा विधायक वीरेंद्र चौधरी, कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष शरद कुमार सिंह उर्फ बबलू सिंह के नाम की भी चर्चा जोरों पर है पर यदि इनमें से कोई लड़ता भी है तो निश्चित तौर पर पंकज चौधरी को एक तरह से वाकवोभर मिलने की संभावना दिखती नजर आ रही है।
महराजगंज लोकसभा सीट पर सपा के पूर्व सांसद कुंवर अखिलेश सिंह और पूर्व विधान परिषद अध्यक्ष गणेश शंकर पाण्डेय भी रेश में हैं। सुत्र बताते हैं कि अखिलेश की पैरवी कांग्रेस के कद्दावर नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कर रहे हैं। अंदरखाने से यह भी खबर है कि दिग्विजय सिंह चाहते हैं कि अखिलेश को पहले कांग्रेस की सदस्यता दिलाई जाए फिर आगे बात बढ़ाई जा सकती है।
उधर कांग्रेस की एक अन्य लाबी चाहती है कि पूर्व विधान परिषद सभापति गणेश शंकर पाण्डेय को कांग्रेस की सदस्यता दिलाकर उन्हें महराजगंज की सीट पर लड़ाया जाए। फिलहाल गणेश और अखिलेश अभी ये दोनों कद्दावर नेता समाजवादी पार्टी में ही मोजूद हैं। अगर इन्हें चुनाव लड़ना है तो दोनों को सपा छोड़ कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करनी पड़ेगी। वैसे कुल मिलाकर पंकज चौधरी के मुकाबले अभी तक कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है।
बता दें कि कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत 2019 के चुनाव में महराजगंज सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं पर उन्हें केवल 72 हजार वोट ही मिले थे। सुप्रिया श्रीनेत महराजगंज के कद्दावर नेता पूर्व सांसद हर्षवर्धन सिंह की बेटी है। हर्षवर्धन सिंह महराजगंज से साल 1985 में फरेंदा सीट से जनता पार्टी के विधायक और दो बार 1989 में जनता दल तथा 2009 में कांग्रेस के सांसद रह चुके हैं। उनका भी अपना एक बड़ा जनाधार आज भी है। लेकिन यह जनाधार केवल फरेंन्दा विधान सभा क्षेत्र में ही सीमित है। जहां तक सुप्रिया श्रीनेत की बात है तो वह कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता होने के नाते अधिकाश समय दिल्ली में ही पार्टी कार्यालय में देती रहीं हैं। इसलिए महराजगंज की जनता से उनका मिलना जुलना कम हो पाता है।
सपा नेता कुंवर अखिलेश सिंह 1991,1993 में दो बार विधायक और 1999 में एक बार सांसद भी रह चुके हैं। उनका भी अपना एक बड़ा जनाधार आज भी है। बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में कुंवर अखिलेश सिंह को कुल 3,85,925 वोट मिले थे और वह दूसरे नंबर पर रहे। इस चुनाव में पंकज चौधरी को करीब 7,27,000 मत मिले थे और वह छठीं बार सांसद बने। जहां तक अखिलेश सिंह की बात है तो उनके अनुज कुंवर कौशल उर्फ मुन्ना सिंह भी 2012 से 2017 तक कांग्रेस के विधायक रहे हैं।
जहां तक पूर्व विधान परिषद सभापति गणेश शंकर पाण्डेय की बात है तो वह भी गोरखपुर-महराजगंज स्थानीय निकाय से तीन बार विधान परिषद सदस्य रहे हैं। वर्ष 2007 से 2012 तक वह मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनका भी महराजगंज में एक बड़ा जनाधार आज भी है।
अभी इस चुनाव में एक और दावेदार पर्दे के पीछे रहकर लोकसभा चुनाव में दावेदारी के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं। यह दावेदार कोई और नहीं नौतनवां विधान सभा के चार बार 1989,1996,2002 और 2007 तक विधायक और पूर्व मंत्री अमर मणि त्रिपाठी रहे हैं। 2017 से 2022 तक इनके पुत्र अमन मणि त्रिपाठी भी नौतनवां विधान सभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक रहे हैं। अमर मणि त्रिपाठी का आज भी महराजगंज में एक व्यापक जनाधार है। हालांकि कि वह वर्तमान समय में कवियत्री मधुमिता शुक्ला हत्या काण्ड में आजीवन कारावास की सजा के बाद जेल से छूटे हैं लेकिन बस्ती के राहुल मद्धेशिया अपहरण कांड को लेकर उन्हें काफी दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है और अभी वह फरार चल रहे हैं। फरारी हालत में भी चर्चा है कि वह इस समय अपने परिवार के किसी सदस्य को महराजगंज सीट से लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए लखनऊ से दिल्ली तक विभिन्न राजनीतिक दलों के संपर्क में हैं। वैसे तो महराजगंज की सीट पर नेता क्या गुल खिलाएंगे ये तो भविष्य के गर्त में है परन्तु इतना तो तय है कि पंकज चौधरी को दूसरी बार हैट्रिक लगाने के लिए में कोई बड़ी कठिनाई नहीं आने वाली है?