जन्मकुंडली में स्त्री श्राप योग (Stri Shrap Yoga)

उत्तर प्रदेश महाराजगंज

हर्षोदय टाइम्स ब्यूरो

महाराजगंज : स्त्री श्राप योग एक विशेष प्रकार का अशुभ योग है जो जन्म कुंडली में कुछ विशिष्ट ग्रहों की स्थिति और योगों के कारण बनता है। यह योग दर्शाता है कि जातक (व्यक्ति) को किसी स्त्री का श्राप लगा है। चाहे वह पिछले जन्म का प्रभाव हो या इस जन्म में किसी स्त्री को दिये हुए दुख या आक्रोश का परिणाम हो सकता है।

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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली मे अनेक प्रकार के योगो की तरह विभिन्न प्रकार के श्राप का उल्लेख किया गया है जिसे सामान्य भाषा मे बददुआ कहते है जिसमें स्त्री श्राप का निर्माण जन्म कुंडली में ग्रहों की विभिन्न स्थिति के फलस्वरूप उत्पन्न होता है जिसमें से स्त्री श्राप के कुछ विचारणीय पहलू निम्नवत है।

श्रापित दोष के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण श्लोक

राहुश्च शनिना युक्तो यदा भावे प्रतिष्ठितः।
तदा तस्य भवे जन्मे शापयोगो विशिष्यते॥

अर्थ: जब राहु और शनि एक ही भाव में स्थित हों, तो उस भाव में शाप योग (श्रापित दोष) उत्पन्न होता है। यह योग दर्शाता है कि जातक ने पूर्व जन्म में ऐसे कर्म किए थे जिनके कारण उसे इस जन्म में किसी स्त्री (या अन्य प्राणी) का श्राप लगा है। यदि यह योग सप्तम भाव में हो, तो वैवाहिक जीवन में संकट आता है। इसे भी “स्त्री श्राप” से जोड़ा जा सकता है, जैसे – पूर्व जन्म में पत्नी या स्त्री जाति का अपमान या त्याग अथवा कष्टदायी स्थिति आदि हो सकता है।

स्त्री श्राप योग कैसे बनता है?

स्त्री श्राप योग मुख्यतः तब बनता है जब कुंडली में कुछ अशुभ ग्रह संयोजन निम्न प्रकार से उपस्थित हों।

  • चंद्रमा और राहु/केतु का संबंध

चंद्रमा स्त्री और मन का कारक है। अगर चंद्रमा पर राहु अथवा केतु साथ हों (विशेषकर 4, 8, 12 भाव में), तो स्त्री श्राप योग बनता है। चंद्रमा और शनि का भी विपरीत संबंध मानसिक पीड़ा और स्त्री से कष्ट दर्शाता है।

  • दूसरे और सातवें भाव में अशुभ ग्रह

द्वितीय (परिवार) और सप्तम (पत्नी/संबंध) भाव में राहु, केतु, शनि या मंगल जैसे पाप ग्रह हों और शुभ ग्रहों से रहित हों। सप्तम भाव में राहु अथवा केतु हो और शुक्र निर्बल हो।
बृहद्पराशर होराशास्त्र में “स्त्री श्राप” शब्द यथावत नहीं आता, परंतु श्राप संबंधी दोषों का उल्लेख कुछ श्लोकों में अवश्य हुआ है। विशेष रूप से श्रापित दोष (Shrapit Dosha) के संदर्भ में, जहां राहु और शनि एक साथ होने पर पूर्व जन्म के पापों या श्रापों का फल इस जन्म में मिलता है, वहाँ श्लोक के माध्यम से यह बताया गया है।

  • शुक्र की खराब स्थिति

शुक्र यदि नीच का हो (कन्या राशि में), शत्रु राशि में हो, राहु/केतु के साथ हो या पाप ग्रहों से पीड़ित हो, तो स्त्री सुख में बाधा आती है।

  • द्वादश भाव (12th House) में स्त्री ग्रहों की पीड़ा

द्वादश भाव व्यय, बिछड़ाव और हानि दर्शाता है। इसमें चंद्रमा या शुक्र यदि राहु/केतु या शनि से पीड़ित हो तो यह योग स्त्री से दु:ख और श्राप का संकेत करता है।

  • नवमांश कुंडली में भी पुष्टि

यदि D-1 (जन्म कुंडली) के साथ-साथ D-9 (नवमांश) में भी उपरोक्त योग बनें तो यह योग और भी अधिक प्रबल हो जाता है।

विशेष परीक्षित सूत्र –

  • सप्तमेश पंचम में, शनि सप्तमेश के नवांश में , पंचमेश की स्थिति अष्टम भाव होने पर स्त्री श्राप का निर्माण होता है ।
  • सप्तमेश अष्टम में, अष्टमेश पंचम में, पुत्र कारक पाप ग्रह से युत हो तो स्त्री श्राप की स्थिति बनती है ।
  • शुक्र पंचम स्थान में, सप्तमेश अष्टम में, पुत्र कारक पाप ग्रह से युत हो तो स्त्री श्राप की स्थिति बनती है ।
  • द्वितीयेश पंचम में पापग्रह से युक्त हो, सप्तमेश अष्टम भाव स्थिति होने पर स्त्री श्राप की स्थिति बनती है।
  • शुक्र नवम मे्, सप्तमेश अष्टम में, तथा लग्न एवं पंचम पापग्रह से युक्त होने पर स्त्री श्राप की स्थिति बनती है।
  • शुक्र नवमेश होकर पाप प्रभावित हो, पंचमेश शत्रु राशि में हो, गुरु, लग्नेश, सप्तमेश त्रिक भाव में हो तो स्त्री श्राप की स्थिति बनती है।
  • राहु – चन्द्र से युत होकर पंचम मे वृषभ या तुला राशि में हो, लग्न – द्वितीय – द्वादश स्थान पाप ग्रह के प्रभाव में होने पर स्त्री श्राप की स्थिति का निर्माण होता है।
  • शनि – शुक्र सप्तम में, अष्टमेश पंचम में, लग्न स्थान मे सूर्य एवं राहु की युति हो तब भी स्त्री श्राप योग बनता है।
  • द्वितीय स्थान मे मंगल, द्वादश में गुरु, पंचम मे शुक्र- शनि – राहु की युति या दृष्टि संबंध हो।
  • द्वितीयेश एवं सप्तमेश अष्टम में, पंचम या लग्न मे मंगल एवं शनि की युति हो पुत्र कारक से युत होने पर स्त्री श्राप योग की स्थिति बनती है ।
  • लग्न मे राहु, पंचम मे शनि, नवम में मंगल, सप्तमेश अष्टम स्थान में विद्यमान होने पर स्त्री श्राप की स्थिति बनती है

( विशेष- जन्म कुंडली मे स्त्री श्राप विशेष के विषय मे निर्णय ज्योतिष विशेषज्ञों द्वारा ज्योतिषीय सूक्ष्मतर पहलूओ के आधार किया जाता है जिसमे गहनतम तथ्यों का समावेश आवश्यक होता है। उपयुक्त तथ्य ज्ञान वृद्धि के परिपेक्ष्य मे समझना चाहिए )

  • स्त्री श्राप योग के प्रभाव / परिणाम
  • वैवाहिक जीवन में अशांति: देर से विवाह, बार-बार रिश्तों में टूटन, पत्नी से कष्ट या पत्नी को कष्ट।
  • संतान सुख में बाधा: संतान नहीं होना, गर्भपात या संतान का कष्ट में रहना।
  • स्त्रियों से धोखा या विरोध: जीवन में महत्त्वपूर्ण स्त्रियों (माँ, पत्नी, बहन, आदि) से मनमुटाव या संघर्ष।
  • धन हानि और मानसिक तनाव: बार-बार पैसे की समस्या, मुकदमेबाज़ी, तनाव, मानसिक रोग।
  • स्त्री के कारण सामाजिक अपमान या बदनामी: झूठे आरोप या चरित्र पर लांछन।
  • धार्मिक/आध्यात्मिक बाधा: पूजा-पाठ में मन न लगना, पुण्य कर्मों में विघ्न। स्त्री श्राप योग का उपाय
  • श्री दुर्गा या माँ लक्ष्मी की आराधना विशेष रूप से सिद्ध कुंजिकास्त्रोत्र का पाठ करे ।
  • शुक्र और चंद्रमा को बल दें जिसमें चांदी धारण करना, चंद्र और शुक्र यंत्र धारण करना।
  • गुरुवार या शुक्रवार को कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना श्रेष्ठ माना गया है ।
  • विवाहित स्त्रियों को वस्त्र और सौंदर्य सामग्री (श्रृंगार) दान करें एवं स्त्रियों का विशेष रूप से सम्मान – आदर करें ।
  • यदि जन्मकुंडली में चन्द्र या शुक्र, राहु अथवा केतु से पीड़ित हो तो राहु और केतु के शांति के उपाय करें। नवार्ण मंत्र का जप नियमित रूप से करें।

नवग्रह शांति या महामृत्युंजय जाप करें

विशेष महत्वपूर्ण – उपरोक्त विषय पर जन्मकुंडली विशेष के अनुसार स्त्री कारक ग्रह चन्द्र एवं शुक्र का क्रूर ग्रह से संबंध, दृष्टि, भाव एवं राशिगत स्थिति, पीड़ा किस स्तर की है उसका भी गहराई से परीक्षण करना आवश्यक होता है।

AstroAcharyaa DrDhananjay Mani Tripathi

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